Wednesday, November 16, 2005

हम हिन्दोस्तानी
वो जो हिन्दी के प्रसार की बातें करते हैं
बच्चे उनके भी अंग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ते हेँ।
स्वयं उन्होंने हिन्दी का
समाचार पत्र तक न पढ़ा होगा
हमारे ढ़ोंग का उदाहरण इससे
और क्या बड़ा होगा?
इतनी बदसलूकी के बाद भी
जन-जन की भाषा इस देश में जिन्दा है।
लेकिन मातृभाषा कहलाये जाने पर
निश्चय ही शर्मिन्दा है।
दासतां का पुट कहलो
या स्वाभिमान की कमी
हम ही सहजनों से कतराते
बदनाम करते हेँ
आन्तरिक प्रशासन की बात हो
या विदेशी मुलाज़्मत
गोरों के नीचे आज भी
हम बेहतर काम करते हैं।
सलाम झाड़ते हैं, 'सर' कह कर बुलाते हैं
सहयोगी तो अक्सर हमें
गंवार नज़र आते हैं।
विदेशियों की सफाई और अच्छाई को तो
हम अपना नहीं सके
ढ़ींगे मारते हम नहीं थकते हैं।
यही कारण है कि इक्कसवीँ शताब्दी में भी
हम सरेआम मूतते और हगते हैं।
प्राकृतिक आपदाओं से भी निपट लेंगे
पहले, आपसी मतभेद सुलझा तो लें
मुख्य मन्त्री ने दी है जो मर्सिडीज़
उसे दो घड़ी चला तो लें।
दो शब्दों में कही जा सकती हे हमारी कहानी
कभी नहीं सुधरेंगे हम हिन्दोस्तानी।
---Hindustani

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