Friday, November 18, 2005

जो मैं ऐसा जानती
के प्रीत किये दुख होय
ओ, नगर ढिंढोरा पीटती
के प्रीत न करियो कोय

मोहे भूल गए साँवरिया, भूल गए साँवरिया -२
आवन कह गये, अजहुं न आये -२
लीनी न मोरी खबरिया
मोहे भूल गए...

(दिल को दिए क्यों दुख बिरहा के
तोड़ दिया क्यों महल बना के) -२
आस दिला के ओ बेदर्दी -२
फेर ली काहे नजरिया
मोहे भूल गए...

(नैन कहे रो-रो के सजना
देख चुके हम प्यार का सपना) -२
प्रीत है झूटी, प्रीतम झूटा -२
झूटी है सारी नगरिया
मोहे भूल गए...

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