Monday, November 21, 2005

माफ़ी के काबिल नहीं हैं ये गलतियाँ
तब भी हो रहीं गलतियों पे गलतियाँ

मौज की दृश्यावली लगती तो है पर
पीढ़ियों को सहनी होगी ये गलतियाँ

जब भी पकड़ा गया फरमाया उसने
भूल से ही हो रहीं थीं ये गलतियाँ

अब तो दौर ये आया नया है यारो
सच का जामा पहने हैं ये गलतियाँ

कभी अपनी भी गिन लो रवि तुमने
दूसरों की तो खूब गिनी ये गलतियाँ

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