Saturday, March 04, 2006

झाड़ू की आदत
वो, जो पहले नासमझ था । ये धर्म शिक्षा तथागत ने दी जब वह जटावन में रह रहे थे, महानीय सम्मुंजनी के बारे में ।

ये महानीय , प्रतीत होता है, झाड़ू लगाते रहते थे, सुबह से शाम तक । एक दिन वो झाड़ू लेकर महानीय रेवत के कमरे में गए, जो वहाँ हमेशा की तरह बैठे थे । इस पर महानीय सम्मुंजनी ने सोचा "ये आलसी जनता के चढ़ावे के खा के, आराम करता है । इसे कम से कम एक कमरे में झाड़ू तो लगानी चाहिए ।" तो महानीय रेवत ने उन्हें कहा " नहा के मेरे पास आओ" । महानीय सम्मुंजनी नहाने के बाद आए ।


महानीय रेवत ने उन्हें कहा "भाई, भिक्षु को हर समय झाड़ू नहीं लगानी चाहिए । सुबह झाड़ू लगाने के बाद उसे भिक्षा के लिए जाना चाहिए । उसके बाद उसे ध्यान कक्ष में बैठ कर शरीर के बत्तीस अंगों का ध्यान करना चाहिए । उसे ध्यान रहना चाहिए शरीर की नश्वारता का । शाम को उसे उठ कर फिर से झाड़ू लगानी चाहिए । मगर उसे पूरे दिन झाड़ू नहीं लगानी चाहिए । कुछ समय आराम भी करना चाहिए । " महानीय सम्मुंजनी ने बात को माना, और जल्दी ही ज्ञान प्राप्त लर अरिहंत हो गए ।

लेकिन उसके बाद, कमरों में कचड़ा भरा रहने लगा । तो भिक्षुओं ने कहा, " महानीय सम्मुंजनी, आप झाड़ू क्यों नहीं लगाते, कमरों में कचरा भरा रहता है ?" तो वो बोले "महानीयों, पहले मैं नासमझ था, अब मुझे समझ आ गयी है ।" तो भिक्षुओं ने बुद्ध को मामला बताया और बोले, " ये महानीय कहते कुछ हैं, और करते कुछ और हैं ।" तो बुद्ध बोले, " मेरा पुत्र महानीय सच कहता है, पहले उसे समझ नहीं थी, तब वो झाड़ू लगाता रहता था । अब वो ध्यान के आनन्द में मस्त रहता है । इसलिए अब वो झाड़ू नहीं लगाता ।" और उन्होनें ये दोहा कहा ,


१७२ वो, जो पहले नासमझ था, नासमझ नहीं है,
प्रकाश फैलाता है जगत में, जैसे बादलों से मुक्त चाँद ।